"आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों"
क्या ये कहने की ज़रूरत है देशवासियों से या ये कहना चाहिए? मेरे ख्याल से जो समय चल रहा है उसमें बहुत ही अवाश्यक हो गया है कि लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाए की आपस में प्रेम करो। क्योंकि ये भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी, आधुनिकीकरण की चकाचौंध, इंटरनेट और मोबाइल साथ ही राजनीति इन सब के बीच व्यक्ति प्रेम शब्द का अर्थ ही भूल जा रहा। बची-खुची कमी राजनेता पूरा कर देते हैं कहीं क्षेत्रवाद तो कहीं धर्मवाद करा कर।
हमे अपनी ज़िंदगी में जो सबसे अवाश्यक चीज अपनानी चाहिए वो है प्रेम। प्रेम एक ऐसा हथियार है कि इसे आप अपनो पर भी चला सकते हैं और अपने दुश्मनों पर भी। इससे किसी का कोई नुक़सान नहीं होगा, अलबत्ता फायदा ही होगा।
प्रेम का अर्थ मेरे विचार में ज़्यादा कुछ नहीं है बस आप एक अच्छे इंसान (व्यक्ति) बन जाएं। इंसानियत दिखाए अपने आप प्रेम फैलेगा। जो व्यक्ति देश से प्रेम करेगा वो कभी भी देश का अहित नहीं चाहेगा। और आपस में प्रेम न करने से देश का ही अहित होता है। वो आर्थिक रुप से हो, व्यक्ति के रुप से हो या और किसी रुप में।
हमारे भारत वर्ष में आपसी भाईचारे की मिली जुली गंगा-जमुनी तहज़ीब की हमारे संविधान की मिसाले अन्य देश देते हैं। इधर कुछ समय से इस स्लोगन के अनुरूप प्रेम में कमी आई है लोग एक दूसरे से डरने लगे हैं। भरोसा करना समाप्त हो रहा है। जो की देश के लिए ख़तरे की घंटी है। ऐसे में लोगों को आपस में प्रेम करने के लिए जागरूक करने का समय आ गया है। ये हमारे देश के लिए बहुत चिंता की बात है कि जहां विभिन्न धर्म के अनुयायी आपस में इतने समय से प्रेम से मिलकर रह रहे थे आख़िर क्या कमी आ गई कि उनका प्रेम अब ईर्ष्या में बदल गया और एक दूसरे के दुश्मन बन गए। ये बहुत शोभनीय विषय है। हम देश के बुद्दिजीवियों को साथ ही नागरिकों को भी सोचना पड़ेगा कि ईर्ष्या नाम की बुराई को होलिका दहन की तरह हम जला दें। वरना इसके दुर्गाभी परिणाम अच्छे नहीं होंगे। दूसरे देश इस बात का फायदा उठाकर हमे और डुबोने की कोशिश करेंगे।