बलात्कार का बढ़ता ग्राफ और खामोश पब्लिक
बढ़ते ग्राफ और उस पर लीपापोती करते नेता व सम्भ्रात लोगो को देख कर यह कहा जा सकता है कि अब मर्यादा समाप्ति की ओर पहुंच रही है। यही वह समय है जब जनता को स्वंय जागरूक हो कर सड़क पर उतरना होगा और बलात्कारियों का बचाव कर रहे पक्ष को यह समझना होगा कि गलत को गलत कहने की आदत डालें वरना जिस दिन जनता सही करने पर आगई वह दिन बहुत ख़तरनाक साबित होगा।
एक बलात्कार जिसने हमें गुस्सा दिलाया। हमारा दिल खौफ से भर दिया।
अभी कुछ वर्षों की बात है। पूरा भारत, पूरा विश्व एक आवाज़ में बोल रहा था, कि क्यों हुआ ऐसा निर्भया के साथ! लेकिन फिर क्या हुआ? क्या बलात्कार के लिए कोई ऐसा क़ानून बना कि बलात्कारियों के दिल में ख़ौफ़ पैदा हो? नहीं! क्योंकि एक निर्भया के मरने के बाद हर दिन, हर साल कितनी ही निर्भयाएं बनती जा रही हैं, उन मर्दों की बदौलत जो अपनी काम इच्छा को बस में नहीं कर पाते। वो सोचते हैं सज़ा मिलने वाली ही नहीं!
हमारे प्रधानमंत्री भले ही कहें कि तीन महीने में फांसी होगी। लेकिन उन्होंने जो कहा पूरा कुछ नहीं हुआ। यह भी हवाई फायर सिद्ध होगा। अगर नहीं तो शुरुआत चिन्मयानंद से कर दें।
मुम्बई में एक बच्ची के साथ ज़बरदस्ती। पूरी 18 कम्प्लेंट्स लेकिन जिस स्कूल में वो था, न उसे निकाला गया, न उसे पुलिस के हवाले किया गया. मतलब, उसे शह मिली वह भी बलात्कार करने की।
बहुत बड़ा अपराध।
एक बच्ची को कोल्ड ड्रिंक में नशा मिला कर गैंग रेप किया।
एक लड़की जिसे एक ड्राइवर ने गाड़ी में लिफ्ट दी सिर्फ रेप करने के लिए।
यह क्या हो रहा है? ये तो बस कुछ उदाहरण हैं। कोई दिन ऐसा नहीं होता जिस दिन रेप की खबर न आती हो।
आखिर क्यों आदमी रेप के लिए बढ़ता है?
हकीकत यह है कि मेंटेलिटी ही ऐसी होती है। हमारा दिमाग पुरानी परम्पराओं और सोच का शिकार है। हर जगह महिलाओं को उपभोग करने का सामान ही समझा जाता है। दिमाग में औरत को प्रति ये जो नज़रिया है, वो ही गलत है।
पॉर्न, कपड़े या दूसरी वजहें तो सिर्फ़ एक जरिया है। पकड़े जाने का डर न हो तो लोग रेप करने में संकोच ही न करें। हमारा समाज सिखाता है कि पुरुष ताकतवर होते हैं और वे महिलाओं से श्रेष्ठ होते हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं।
सोसाइटी में जो नजरिया है वो यह कि अगर लड़की मॉडर्न है तो उसे लोग 'तैयार' मानते हैं। वो उसके साथ कुछ भी करने के लिए सोचते हैं। इसके अलावा मीडिया का रोल गलत है समाज में सेक्सुअल वॉयलेंस दिखाते हैं, कोई हीरो लड़की के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करेगा, तो लोग उसे रोल मॉडल की तरह ही लेते हैं। हमें औरत के प्रति मानसिकता बदलनी ही होगी।
और इन सामाजिक बातों के अलावा सबसे जरूरी है कानून में संशोधन और सख्ती से लागू करना। यदि रेपिस्ट को सरेआम फांसी का प्रावधान हो जाये तो रेप रूक जायेगा।